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भारत और श्रीलंका की दोस्ती नई ऊंचाई पर, प्रधानमंत्री मोदी

भारत ने श्रीलंका के चाय बागान में काम कर रहे भारतीय मूल के लोगों के लिए बनाये गए 404 घर आज उनको सौंप दिए है। प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस कार्यक्रम को संबोधित किया। भारत द्वारा किसी भी देश में यह सबसे बड़ी घर परियोजना है। मोदी ने कहा कि हमने हमेशा से शांत, सुरक्षित और समृद्ध श्रीलंका का सपना देखा है जहां सब की प्रगति और विकास की आंकक्षाएं पूरी हों। ये घर भारतीय आवास योजना के तहत बनाए गए हैं। 35 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत की परियोजना के तहत पहली कड़ी में बने घरों को आज सौंप दिया गया है। श्रीलंका में रहने वाले भारतीय मूल के यह अधिकतर लोग तमिल है।

यहां भारतीय उच्चायुक्त ने कहा कि जमीन की मिल्कियत समेत नए घरों को श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे, भारत के उच्चायुक्त तरंजीत सिंह संधू, मंत्री पलानी दिगम्बरम, नवीन दिस्सनायक और ज्ञानथा करुणतिलेका ने सौंपे। मोदी ने कहा कि भारत अपनी नेबरहुड फर्स्ट नीति में श्रीलंका को एक विशेष स्थान पर बनाए रखेगा। साथ ही उन्होने कहा कि 60,000 में से अब तक करीब 4700 घर बन गए हैं। इन घरों को बनाने के लिए दिए गए 35 करोड़ अमेरिकी डॉलर का अनुदान किसी भी देश में भारत द्वारा दिए गए सबसे बड़े अनुदान में से एक है।
दो देशों को जोड़ा है लाभार्थियों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि ‘आपकी जड़ें भारतीय हैं।’ वे श्रीलंका में बड़े हुए हैं। आपने न सिर्फ दो देशों को जोड़ा है बल्कि दिलों को छुआ है और दो महान राष्ट्रों के हाथों को मजबूत किया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज हम नए भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। भारत और श्रीलंका की दोस्ती नई ऊंचाई पर पहुंची है।’

मोदी ने कहा, ‘हम अतिरिक्त 10,000 घरों के निर्माण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे हैं जिस पर 12 अरब श्रीलंकाई रुपये की लागत आएगी।’ उन्होंने कहा कि नए 10,000 घरों के निर्माण के लिए भूमि की पहचान कर ली गई है। विक्रमसिंघे ने भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक संपर्क को याद करते हुए मोदी के आज दिए गए इस सुझाव का स्वागत किया कि कोलंबो और वाराणसी के बीच सीधा वायु संपर्क स्थापित किया जाए जिससे श्रीलंका के श्रद्धालुओं को सुविधा हो। कोलंबो और वारणासी के बीच एयर इंडिया की उड़ान अगस्त 2017 में शुरू हुई थी। श्रीलंका में रहने वाले भारतीय मूल के तमिल अधिकतर चाय और रबड़ बागानों में काम करते हैं और उनके पास उचित घरों का अभाव है।

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