93 ब्लास्ट, देर सही,पर इंसाफ हुआ। कर्ण हिंदुस्तानी
मुंबई बम ब्लास्ट – मौत और उम्र क़ैद
मुम्बई आसपास (कर्ण हिंदुस्तानी)
आखिरकार १९९३ के मुंबई बम धमाकों के मामले में गुरूवार को अदालत ने अपना फैसला सुना ही दिया। टाडा की विशेष अदालत ने इन बम धमाकों में दोषी मानते हुए माफिया सरगना अबू सालेम और करीमुल्लाह को उम्र क़ैद की सजा सुनाई जबकि सालेम के साथी रहे मोहम्मद ताहिर मर्चेंट तथा फ़िरोज़ अब्दुल राशिद खान को सजा ऐ मौत सुनाई। सालेम को पुर्तगाल से हिन्दुस्तान लाया गया था। हिन्दुस्तान और पुर्तगाल में इस प्रत्यार्पण के समय जो संधि हुई थी या समझौता हुआ था उसके तहत सालेम को फांसी नहीं दी सकती है। अब सवाल यह उठता है कि अफ़ज़ल गुरु को फांसी दिए जाने पर देश भर में हो हल्ला मचाने वाले सेक्युलर लोग अब कहाँ हैं ? क्यों नहीं इस बार भी हंगामा किया गया और अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्याचार किये जाने का ढिंढोरा पीटा गया ? दरअसल बास्ट यह है की सभी जान गए हैं कि मोदी सरकार के राज में किसी भी तरह का कोई भी दोषी बख्शा नहीं जाएगा। जबकि यह फैसला विशेष अदालत का है और मोदी सरकार पिछली सरकारों की तरह अदालत के फैसले को रद्द नहीं करती है। चुनाव के समय यदि डेरा वालों ने कथित रूप से बीजेपी को समर्थन दिया था तो भी जब गुरमीत सिंह पर कार्रवाई की बात हुई तो मोदी सरकार ने कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया , जो जैसा करेगा वह वैसा ही भरेगा की नीति केंद्र सरकार ने अपनाई हुई है। यहां तक कि मोदी सरकार ने रेल दुर्घटनाओं की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए जब अपने तेवर कड़े किये तो रेल मंत्री सुरेश प्रभु को भी इस्तीफा देने के लिए मज़बूर होना पड़ा। महाराष्ट्र में बीजेपी के दो कद्दावार नेता एकनाथ खड़से और प्रकाश मेहता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो उन पर भी जांच बैठा दी गयी। एक नाथ खड़से पर तो प्राथमिकी भी दर्ज हो गई है। नरेंद्र मोदी जी ने चुनावों के समय घोषित कर दिया था कि ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा , यह बात अब प्रत्यक्ष रूप से दिख भी रही है। भले ही नामशेष बचा विपक्ष कुछ भी कहे मगर मोदी सरकार अपनी हर कसौटी पर खरी उतर रही है। देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त किसी भी व्यक्ति को किसी भी सूरत में ना छोड़ने का एक मात्र एजेंडा मोदी सरकार का है। बात फिर करें मुंबई बम ब्लास्ट की तो १९९३ में दाऊद और उसके पंटरों ने यह धमाके करवा कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशाँ खड़ा कर दिया था। इन बम धमाकों के बाद विशेष टाडा अदालत का गठन किया गया और सुनवाई शुरू की गई। १२ रह से घायल मार्च १९९३ को करवाए गए बम धमाकों में २५७ निर्दोष नागरिक मारे गए थे , सात सौ से भी अधिक बुरी तरह से घायल हुए थे। लगभग २७ करोड़ की संपत्ति का नुक्सान हुआ था। इन बम धमाकों में यह दूसरी बार सजा सुनाई गई है। पहली सजा २००७ में सुनाई गई थी जिसमें १०० आरोपियों को दोषी करार दिया गया था और याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनाई गई थी। सौ आरोपियों में फिल्म अभिनेता संजय दत्त का भी नाम शामिल था। संजय दत्त हाल ही में सजा काट कर रिहा हुए हैं। सालेम और अन्य लोग बाद में गिरफ्तार होने के कारण उन पर बाद में फैसला आया। कुल मिलाकर विशेष टाडा अदालत ने बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपना फैसला सुनाया और बम धमाकों में मारी गई निर्दोष जनता को भी सुकून मिला है।