मर्दों का वहशीपन और बेटी ट्विंकल की मौत
(कर्ण हिन्दुस्तानी )
बरसों पहले पहले गीतकार साहिर लुधियानवी ने एक नज़्म लिखी थी जिसके बोल थे ‘औरत ने जन्म दिया मर्दों को , मर्दों ने उसे बाज़ार दिया , जब जी चाहा मसला- कुचला , जब जी चाहा दुत्कार दिया।१९५८ में फिल्म साधना के लिए लिखी इस नज़्म की सार्थकता आज भी ज़िंदा है।उत्तर प्रदेश के अलीगढ जिला में एक ढाई साल की बच्ची ट्विंकल को महज इस लिए दरिंदगी के साथ मार दिया गया क्योंकि उसके माँ बाप सामने वाले से लिया दस हज़ार का क़र्ज़ अदा करने में असहाय थे।
मर्दों में बढ़ रही औरतों और बच्चियों के प्रति हिंसा का यह रूप भी देखने को मिलेगा यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। ऐसा भी नहीं कि इस घटना के आरोपी नाबालिग हैं। पहला आरोपी असलम ४५ साल का है और दुसरा आरोपी मोहम्मद ज़ाहिद ३८ साल का है। इन दोनों आरोपियों को क्या सज़ा मिलेगी कोई नहीं जानता लेकिन इतना तो इस घटना के बाद तय हो चुका है कि पुरुष प्रधान संसार में नारी सुरक्षित नहीं है। संसार की जन्मदाती आज दरिंदगी के यज्ञ में जबरन आहुति बनकर स्वाहा हो रही है।
आखिर ढाई साल की ट्विंकल का कसूर क्या था ? उसे तो पता भी नहीं होगा कि उसके नाज़ुक शरीर पर वार क्यों किये जा रहे हैं , क्यों उसकी कोमल त्वचा को किसी कसाई की तरह उधेड़ा जा रहा है। जिन दो दरिंदों ने यह काम किया है उन दोनों को अदालती कार्र्रवाई के पश्चात फांसी पर लटकाने के बजाए बीच चौराहे पर ज़िंदा जला देना चाहिए। ताकि आने वाले समय में ऐसे जघन्य अपराध करने के बारे में सोचने वालों की रूह काँप उठे।
हम बावीसवीं सदी की बात करते हुए तरक्की कर रहे हैं और हमारे समाज के कुछ लोगों की मानसिकता इस हद तक गिर चुकी है कि हम ढाई साल की बच्ची की जान लेने में भी नहीं चूक रहे हैं। अगर यही मानसिकता हमारी तरक्की का सबब बन रही है तो इस मानसिकता पर लानत है। लानत है ऐसे समाज पर जिस समाज में ढाई साल की बच्ची भी सुरक्षित नहीं है। अब वक़्त आ गया है कि समाज में से ऐसी मानसिकता वालों को खोज कर उनको खत्म किया जाए। क्योंकि ऐसी मानसिकता वालों की वजह से ही समाज बदनाम हो रहा है।