एक साल की महाराष्ट्र सरकार – विवाद ही विवाद
(कर्ण हिंदुस्तानी )
आज महाराष्ट्र की तीन पहियों वाली सरकार को एक साल पूरा हो गया। अपने आप में अजब यह गठबंधन भारतीय राजनीती में हमेशा याद रखा जाएगा। जिस शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे ने हमेशा कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को देश के लिए खतरा बताया था वही शिवसेना आज कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सत्ता में है। शिवसेना का हिंदुत्व और हिंदुत्व की परिभाषा सब सत्ता के लिए खत्म हो गयी। आज से ठीक एक साल पहले जब शिवसेना – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकार महाराष्ट्र में अवतरित हुई थी तब सभी ने कहा था कि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी मगर सरकार चल रही है। इसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सहनशीलता भी काफी काम आयी है। अपने उग्र विचारों के लिए जाने वाले शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे ने उग्रता को दरकिनार कर सरकार की कमान संभाली और एक वर्ष पूरा भी किया। विरोधी पक्ष क्या कह रहा है ? क्या आरोप लग रहे हैं इन सभी बातों को एक राजनीतिक विवाद मानकर उद्धव ठाकरे चल रहे हैं। एक साल में इस ठाकरे सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसे उपलब्धि माना जा सके। हाँ विवादों का सामना हमेशा ही हो रहा है। पालघर में निर्दोष साधुओं की सरेआम हत्या से शुरू हुआ विवाद अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या से होता हुआ अर्णब गोस्वामी और कंगना तक जा पहुंचा। कंगना की बयानबाज़ी और अर्णब की तेज़ तर्रार पत्रकारिता ने निसंदेह सरकार को पशोपेश में डालने का काम किया और कहीं ना कहीं उद्धव सरकार का शिवसेना वाला रूप जाग उठा , संयम टूट गया। जिसका नतीज़ा कंगना के कार्यालय पर मुंबई महानगर पालिका का बुडोज़र चल गया। इसके बाद अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी भी की गयी। दोनों ही मामलों में उद्धव सरकार को अदालत की कड़ी फटकार लगी। अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाई तो उच्च न्यायालय ने भी कंगना के तोड़े हुए कार्यालय की आर्थिक भरपाई का आदेश दिया है। महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमितों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी मगर उद्धव सरकार कंगना और अर्णब में उलझी हुई थी। आम मुम्बईकर लॉक डाउन के बाद जब उपनगरीय गाड़ियों में यात्रा की अनुमति मांग रहा था तब उद्धव सरकार केंद्र सरकार के सामने प्रस्ताव रखने तक में देरी कर रही थी। लॉक डाउन के दौरान बजिली के बढे हुए बिलों को कम करने का आश्वासन दिया गया मगर बाद में यह आश्वासन सिर्फ राजनीतिक आश्वासन बन कर रह गया। परेशान जनता को विपक्ष ने भी अपनी राजनीती के लिए इस्तेमाल किया और आंदोलन करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। मगर उद्धव सरकार ने आम जनता के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए। हाँ एक बात ज़रूर हुई सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे ने अपने मुखपत्र में अपनी बात सामने रखी। विपक्ष को जमकर कोसा और इसके सिवा कुछ नहीं किया। अब आगे चलकर आने वाले चार सालों में उद्धव सरकार क्या लोकोपयोगी कार्य करेगी यह तो वक़्त के गर्भ में ही छिपा है। कुल मिलाकर महाराष्ट्र सरकार का एक साल विवादों में ही बीता है।