सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामला- बॉलीवुड में रैगिंग का बोलबाला ! (भाग – एक )
( कर्ण हिंदुस्तानी )
उभरते कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने हिंदी फिल्म जगत की एक ऐसी हक़ीक़त बयान कर दी जिसे मौजूदा समय में हर नया कलाकार झेल रहा था।
यहां तक कि कुछ स्थापित हो चुके गायक और कलाकार भी इस तरह की प्रताड़ना के शिकार हो चुके हैं और काम ना मिलने की वजह से घर पर ही बैठे हैं।
मशहुर संगीतकार स्वर्गीय नौशाद जी को बॉलीवुड के नाम से ही नफरत थी वह कहा करते थे , यह बॉलीवुड क्या है ? आप लोग हिंदी फिल्म जगत शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं करते ?
हॉलीवुड की तर्ज पर बॉलीवुड नामकरण करना स्वर्गीय नौशाद जी को बिलकुल पसंद नहीं था। क्योंकि उनका यह मानना था कि अंग्रेजियत हमारे हिंदी फिल्म जगत को बर्बाद कर सकती है।
हमारे यहां संगीत को देवी – स्वर रजनी कहा जाता है , तमाम राग रागनियां हमारी धरोहर हैं। अच्छा कलाकार किसी के रहमो -करम का मोहताज नहीं होता। शायद नौशाद जी ने आने वाली पीढ़ी को बहुत पहले ही भांप लिया था।
क्योंकि आज के माहौल में हिंदी फिल्म जगत पूरी तरह से अंग्रेजियत में डूब कर बॉलीवुड बन चुका है। यहां किसी को किसी की काबलियत से कुछ लेना देना नहीं है।
यहां अब एक शब्द आम हो चुका है जिसे बॉलीवुड की भाषा में कोम्प्रोमाईज़ और शुद्ध हिंदी में समझौता कहा जाता है। यह समझौता कागज़ी ना होकर जिस्म और पलंग से जुड़ा होता है।
फिर जिस्म स्त्री और पुरुष किसी का भी कोई फरक नहीं पड़ता है। हिंदी फिल्म इडस्ट्री में एक बड़ी तादात ऐसे लोगों की है जो औरतों के शौक़ीन हैं तो ऐसे लोगों की भरमार भी है जो लड़कों के शौक़ीन हैं।
समलैंगिकों की संख्या बॉलीवुड में काफी है। ऐसे में अब लॉबी यानी कि गुटबाज़ी भी जमकर हावी होने लगी है। एक विशेष गुट का आजकल बॉलीवुड पर कब्ज़ा हो चुका है।
यह गुट अपने हिसाब से सभी को हांकता है। इस गुट का काम नए आये कलाकारों को नीचा दिखाना है और यह साबित करना है कि हम तुम्हारे सीनियर हैं। हमसे टकराने की हिमाकत मत करना। वरना हम तो बॉलीवुड के बादशाह हैं। तुमको फ़कीर बना देंगे।
ऐसे ही गिरोह का शिकार बन गया उभरता हुआ कलाकार सुशांत सिंह राजपूत। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके बॉलीवुड की चकाचौंध के बीच भाग्य आजमाने चला आया था सुशांत सिंह राजपूत।
उसे पता नहीं था कि बॉलीवुड की इस दुनिया को कई लोग दीमक की तरह चाट रहे हैं और इन दीमकों के बीच अपनी राह बनाना इतना आसान नहीं है।
फिर भी सुशांत सिंह राजपूत ने मेहनत के बल पर अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी और एम एस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी में अपने अभिनय के बल पर फिल्म समीक्षकों को हिलाकर रख दिया।
इस फिल्म के लिए सुशांत सिंह राजपूत ने कड़ी मेहनत की और क्रिकेट और धोनी की बारीकियों को कई माह तक समझा। तब जाकर धोनी की आत्मकथा को सुशांत सिंह राजपूत ने बड़े परदे पर साकार किया।
फिल्म ने अच्छी खासी कमाई की और सुशांत सिंह राजपूत का जलवा सभी को दिखने लगा। बिहार के रहने वाले सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी लोकप्रियता के बल पर अपनी कीमत भी बढ़ा दी और अब उसे एक फिल्म के लगभग साढ़े तीन करोड़ मिलने लगे।
चारों तरफ इस नए और शर्मीले कलाकार की चर्चाएं होने लगीं। हिंदी फिल्म जगत में पचास पार कर चुके और दवाइयां खा कर जवान बने रहने वाले शाहरुख़ खान और अन्य खान बंधुओं को इस कलाकार से अपनी कुर्सी को धोखा लगता दिखने लगा।
नतीजा शाहरुख़ खान ने शाहिद कपूर के साथ मिलकर एक अवार्ड कार्यक्रम में सुशांत सिंह राजपूत को हज़ारों दर्शकों के सामने बे इज़्ज़त किया और उसकी लोकप्रियता का जमकर मजाक भी उड़ाया।
अपने शर्मीले स्वभाव के कारण सुशांत सिंह राजपूत सिर्फ मुस्कुरा कर चुप हो गए। इस चुप्पी को अपनी बादशाहत मानकर खान बंधुओं की हिम्मत बढ़ती गयी और सुशांत सिंह को मिलने वाली फिल्मों की राह में रोड़े डालने का काम भी शुरू कर दिया गया।
यहां तक कि यशराज फिल्म के बैनर वाली आधा दर्जन फिल्मों से सुशांत सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हिंदी फिल्म जगत का ऐसा घिनौना रूप सुशांत सिंह राजपूत ने पहली बार देखा था और वह हैरान हो गया।
अपने संघर्ष के दिनों में सुशांत सिंह ने बालाजी टेलीफिल्म के बैनर में काम किया था और एकता कपूर की हरकतों को ,उसकी गाली गलौज वाली बातों को भी प्रत्यक्ष देखा था।
एकता कपूर के साथ काम कर रहे और काम कर चुके लोग अक्सर कहते हैं कि कोई सड़क छाप लड़की भी इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं करती होगी जिस भाषा का प्रयोग एकता कपूर अपने धारावाहिकों के सेट पर कलाकारों के साथ करती है।
सुशांत सिंह राजपूत ने यह सब भी सहा ही था। मगर उसने अपने काम पर ध्यान दिया और आगे की तरफ बढ़ना जारी रखा। पी के जैसी फिल्म में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाले सुशांत सिंह को यह नहीं पता था कि अब हिंदी फिल्म जगत में अभिनय की कदर नहीं होती बल्कि जी हज़ूरी करने वालों का बोलबाला होता है।
एक विशिष्ट तरह के गिरोह की चापलूसी करके ही हिंदी फिल्म जगत में नाम कमाया जा सकता है और अभिनय के साथ साथ अल्लाह मालिक बोलना भी आना चाहिए। वरना आपको इस तरह से निकाल कर फेंक दिया जाएगा जैसे दूध से मक्खी फेंक दी जाती है।
जबकि एक ज़माना ऐसा भी था कि युसूफ खान को दिलीप कुमार ,बेगम मुमताज़ जेहान देहलवी को मधुबाला ,फातिमा रशीद को नरगिस ,महजबीं बानो को मीना कुमारी ,बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी को जॉनी वाकर और सय्यद इश्तिहाक अहमद को जगदीप बनकर हिंदी फिल्मों में काम करना पड़ता था।
मगर अब हालात ऐसे हैं कि हिंदी फिल्मों से भजन तक गायब हो गए हैं और मुस्लिम धर्मावलम्बियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। (जारी )